ज्ञानी इन हिंदी | gyani in hindi

ज्ञानी इन हिंदी | gyani in hindi: इस धरती पर आख़िर मानव ही क्यों ज्ञानी हैं? मानव जीवन एक ऐसा जीवन है जिसमें मनुष्य को गुण- अवगुण सभी भरपूर मिलते हैं। जिसमें आपको आगे खुद को तैयार कैसे करना है।

ज्ञानी बनने के लिए पर्याप्त मैटेरियल मिल चुका है हमें किन चीजों को (गुण- अवगुण) अपना कर अपने व्यक्तित्व को चमकाना है या गिराना है यह स्वयं के विवेक पर निर्भर करता है।

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विवेक (ज्ञान) जब जागृत होता है तब हम आसपास के माहौल और परिस्थितियों स्वयं के अनुभवों से सीखते हैं उसमें नए-नए प्रयोग करना चाहते हैं सही गलत को समझना चाहते हैं।

ज्ञानी इन हिंदी – ज्ञानी को ज्ञान कैसे प्राप्त होता है?

हम सब कहते हैं -अमुक व्यक्ति बहुत ज्ञानी है या विद्यावान है । ज्ञान और विद्या दोनों अलग – अलग चीजें हैं ज्ञान स्वयं को तपा कर, प्रकृति के सम्मुख, और ज्ञानियों से सत्संग करके भी प्राप्त हो सकता है। यह आत्मा की आवाज को सुनने की कला है। यह खुद के और दूसरों के आत्मिक सुख शांति का कारण बनता है।

जबकि विद्या धन कमाने या मनोरजंन,अन्य भौतिक चीजों का साधन बनती है। भौतिक रूप से जीने के लिए विद्या अत्यंत जरूरी है।

विद्या, ज्ञान ,सौंदर्य ,धन, यश यह सभी दूसरों के लिए ईर्ष्या का कारण बनते हैं और जिनके पास यह चीजें हैं वह भी संतुष्ट नहीं हैं वह इसे बढ़ाने में लगे रहते हैं ।जरा सी प्रशंसा इन्हें घमंड से भर देती है।

लेकिन जो ज्ञानी व उत्कृष्ट व्यक्तित्व के धनी हैं वह ईर्ष्या से खुद को दूर बनाये रखने में भलाई समझते हैं क्योंकि ईर्ष्या होने पर आलोचना जन्म लेती है शत्रुता बढ़ती है एक दूसरे को नीचा दिखाने की कोशिश में अपयश मिलता है।

जो अल्प ज्ञानी हैं वह ईर्ष्या से ग्रस्त होकर दूसरों की आलोचना कर नीचा दिखाने की कोशिश करते हैं,तमाम प्रपंच रचकर बदनाम करते हैं। बदले में शत्रुता पाल कर खुद को पतन में धकेलते हैं।

जो मध्यम श्रेणी के ज्ञानी होते हैं वह ईर्ष्या तो करते हैं लेकिन खुद को उनसे आगे ले जाने का प्रयत्न करते रहते हैं । यह आलोचना और प्रशंसा दोनों करते हैं ताकि कोई इनको यह न समझ सके कि यह किस प्रकार कितनी ईर्ष्या करते हैं।

उच्च श्रेणी के ज्ञानी दोनों से भिन्न होते हैं वह आलोचना को रहने देते हैं उनका मानना होता है कि व्यक्ति अपने कर्मों का अच्छा -बुरा का फल भोगता है । वह प्रशंसा भी तब करते हैं जब आत्मिक रूप से प्रशंसा करना चाहते हैं। यह नकलची न होकर हर क्षेत्र में एकदम मौलिक होते हैं।

यदि अपने अंदर सुधार करते रहने की संभावना है तो जिससे भी ईर्ष्या हो, प्रशंसा न करने का मन हो और यह जानते हो कि अमुक व्यक्ति प्रशंसा योग्य है तो मन की मत सुनो ,,आत्मा की सुनो और प्रशंसा कर डालो,, ईर्ष्या हो तो और करो, और प्रशंसा करो।

एक दिन देखोगे कि आलोचना करने की प्रवृत्ति धीरे-धीरे कम होती जायेगी और आपके अंदर दूसरों के प्रति ईर्ष्या खत्म या कम होगी।

आप किसी की आत्मा से प्रशंसा करेंगे तो दूसरों की आत्मा तक पहुंचेगी।

ठीक वैसे जैसे सही नंबर डायल करेंगे तो सही व्यक्ति के पास पहुंचेगा।

गलत नंबर डायल करेंगे तो उस व्यक्ति से बात नहीं कर सकेंगे जिसके लिए मिलाया। लोगों के साथ कम जुडो लेकिन हृदय से जुडो आज भी आपको आप जैसे दस मिल जायेंगे।

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