राजस्थान के रीति – रिवाज | Culture of rajasthan in hindi: इस आर्टिकल में हम जानेंगे राजस्थान के कल्चर यानी राजस्थान की संस्कृती ( rajasthan ki sanskriti) और यहाँ के रीति रिवाजो के बारे में rajasthan ka culture बहुत ही अद्भुत और अनोखा कल्चर है यहाँ की संस्कृति बहुत पुरानी आज भी चल रही है।
rajasthan art and culture in hindi यहाँ के आर्ट और रीती रिवाज बहुत पुराने और अनोखे है मजे की बात तो ये है की लोग आज भी यहाँ पुराने रीती रिवाजो के हिसाब से चलते है culture of rajasthan wikipedia in hindi विकिपेडिया पर आप और ज्यादा राजस्थान के कल्चर के बारे में जान सकते है।
राजस्थान के रीति – रिवाज
आठवा पूजन:
राजस्थान में जब एक स्त्री अपने गर्भवती होने के सात ७ महीने पुरे कर लेती है तब इष्टदेव का पूजन किआ जाता है और प्रतिभोज का आयोजन किआ जाता है।
सगाई:
वधु पक्ष की और से सम्बन्ध तय होने पर सामर्थ अनुसार कुछ रूपए और नारियल दिए जाते है आसान भाषा में कहे तो शादी से पहले रिश्ता पक्का कर लेना।
बिनौरा:
सगे सम्बन्धी और गांव के दूसरे लोग अपने घरो में वर या वधु तथा उसके घर वालो को बुला कर भोजन करते है जिसे बिनौरा कहते है।
कांकन डोरडा:
विवाह से पहले गणपति स्थापना के समय तेल पूजन कर वर या वधु के दाए हाथ में मौली या लच्छा को बाँट कर बनाया गया एक डोरा बांधते है जिसे कांकन डोरडा कहते है विवाह के बाद वर के घर में वर वधु एक दूसरे के कांकन डोरडा खोलते है।
बान बैठना और पीठी करना:
लग्नपत्र पहुंचने के बाद , गणेश पूजन ( कांकन डोरडा ) के बाद शादी से पहले तक रोज वर और वधु को अपने अपने घर में चौकी पर बैठा कर गेहू का आटा , बेसन में हल्दी और तेल मिला कर बने उबटन (पीठि) से पुरे शरीर पर मला जाता है जिसको पीठि करना कहते है इस समय सुहागन औरते मांगलिक गीत जाती है इस रस्म को बान बैठना कहते है।
बिन्दोली:
शादी के एक दिन पहले वर और वधु को सजा धजा कर घोड़ी पर बैठाकर पुरे गांव में घुमाया जाता है जिसे बिन्दोली निकलना कहते है।
मोड बांधना:
शादी के दिन सुहागिन स्त्रियाँ नहला धुला कर सुसज्जित कर कुलदेवता के समक्ष चौकी पर बैठा कर उसके पैर पर मोड (मुकुट) बांधती है।
पनघट पूजन या जलमा पूजन:
बच्चे के जन्म के कुछ दिनों बाद ( सवा महीने बाद ) पनघट पूजन या कुआ पूजन की रस्म की जाती है इसे जलमा पूजन भी कहते है।
तोरण:
ये जब बारात लेकर दुल्हन के घर पहुँचता है तो घोड़ी पर बैठे हुवे ही घर के दरवाजे पर बंधे हुवे तोरण को तलवार से छूता है जिसे तोरण मारना कहते है तोरण एक प्रकार का मांगलिक चिन्ह है।
बरी पड़ला:
शादी के समय बारात के साथ वर के घर से वधु को साड़िया और दूसरे कपड़े गहने आदि की भेंट वधु के घर जाकर दी जाती है इसे पड़ला कहते है और भेंट किये गए कपड़ो को पडले का वेश कहते है फेरो के समय इन्हे पहना जाता है।
मारत:
शादी के एक दिन पहले रातीजोगा होता है घर में देवी देवताओ की पूजा होती है और मांगलिक गीत गए जाते है इस दिन परिजनों रिस्तेदारो को भोजन भी कराया जाता है इसे मारत कहते है।
खेतपाल पूजन:
राजस्थान में विवाह का कार्यक्रम ८ से १० दिनों पहले ही शुरू हो जाते है शादी से पहले गणपति स्थापना से पहले रविवार को खेतपाल बावजी (क्षेत्रपाल लोकदेवता) की पूजा की जाती है।
Culture of rajasthan in hindi
पहरावणी या रंगबरी:
शादी के बाद दूसरे दिन बारात विदा की जाती है विदाई में वर सहित सारे बाराती को वधु पक्ष की और से पगड़ी बंधाई जाती है और जितनी हो सके उतनी नगद राशि दी जाती है इसे पहरावणी कहा जाता है।
सामेला:
जब बारात दुल्हन के गांव पहुँचती है तो वर पक्ष की तरफ से नाई या ब्राह्मण आगे जाकर कन्या पक्ष को बारात के आने की सुचना देता है और कन्या पक्ष की तरफ से उसे नारियल और दक्षिणा दी जाती है फिर वधु का पिता अपने सगे सम्बन्धियों के साथ बारात का स्वागत करता है स्वागत की ये क्रिया सामेला कहलाती है।
बढार:
शादी के अवसर पर दूसरे दिन दिया जाने वाला सामूहिक प्रतिभोज बढार कहलाता है।
कुंवर कलेवा:
सामेला के समय वधु पक्ष की तरफ से वर और बारात के अल्पाहार के लिए सामग्री दी जाती है जिसे कुंवर कलेवा कहते है।
बिन्द गोठ:
शादी के दूसरे दिन पूरी बारात के लोग वधु के घर से कुछ दूर कुवे या तालाब इत्यादि पर जाकर स्थान करने के बाद अल्पाहार करते है जिसमे वर पक्ष की और से दिए गए कुंवर कलेवे की सामग्री का इस्तेमाल करते है इसे बिन्द गोठ कहते है।
मायरा:
राजस्थान में मायरा भरना शादी के समय की एक रस्म है इसमें बहन अपनी बेटी या बेटे का विवाह करती है तो उसका भाई अपनी बहन को मायरा ओढ़ाता है जिसमे वो आभुषण , कपड़े , और पैसे और बहुत सारी भेंट देता है और चुनरी ओढ़ाता है।
डावरिया प्रथा:
ये प्रथा और रस्म अब खत्म हो चुकी है इसमें राजा महाराजा और जागीरदार अपनी बेटी के शादी में दहेज़ के साथ कुंवारी कन्याएं भी देते थे जो उम्र भर उसकी सेवा में रहती थी जिसको डावरिया कहते थे।
नाता प्रथा:
कुछ जातियों में पत्नी अपनों को छोड़ कर किसी अन्य पुरुष के साथ रह सकती है इसे नाता करना कहते है इसमें कोई औपचारिक रीती रिवाज नहीं करना पड़ता है सिर्फ आपसी सहमति होती है विधवा औरते भी नाता कर सकती है।
नांगल:
नवनिर्मित गृहप्रवेश की रस्म को नांगल कहते है।
मौसर:
किसी वृद्ध की मौत होने पर उसके परिजनों द्वारा उसकी आत्मा को शांति के लिए दिया जाने वाला मृत्युभोज मौसर कहलाता है।
आख्या:
बच्चे के जन्म के आठवे दिन बहने जच्चा को आख्या करती है. और एक मांगलिक चिन्ह साथिया भेंट करती है।
जडूला उतरना:
जब बालक २ या ३ साल का हो जाता है तब उसके बाल उतराये जाते है मुंडन संस्कार को ही जडूला कहते है।
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