प्रेम बंधन | Prem Bandhan: प्रेम इतना अलौकिक है कि यह तप समान ऊर्जा रखता है जिस तरह तपस्वी /साधक के चेहरे पर तेज रहता है उसी तरह से प्रेमी के चेहरे पर तेज प्रस्फुटित होता है इसलिए प्रेम करने वाले इंसान के पास चाहे किसी भी भौतिक चीज की कमी हो उसे वह कमी नहीं लगती ,उस व्यक्ति को प्रेम बंधन | Prem Bandhan मिल जाने पर लगता है कि वह मानो पूर्ण हो गया।
पूर्ण कौन होता है ब्रह्म ! यानि कि प्रेम करने के समय व्यक्ति ब्रह्म के निकट होता है इसलिए प्रेम करने वालों का चित्त प्रशन्नता से भर उठता है।
उसको अपरिमित आनंद का एहसास होने लगता है।
प्रेम बंधन
जिनको प्रेम में विछोह का डर है वह शरीर से प्रेम करते हैं जो अपने प्रेमी की आत्मा में डूब जाते हैं उन्हें विछोह का डर नहीं रहता। क्योंकि प्रेम होते ही व्यक्ति जन्मों का साथी हो जाता है।
दोनों के प्रेम की ऊर्जा सदा साथ रहती है जिससे उसका एहसास हर जगह रहता है।
प्रेम में यह जानना जरूरी है कि आपका प्रेम कैसा है?
स्वार्थ हेतु उपजा प्रेम जन्मों क्या कुछ वर्षों तक नहीं रहता। यही स्थिति आकर्षण से उपजे प्रेम की है।
देह के भोग के बाद आकर्षण जाने लगता है।
जबकि प्रेम तो सदा बढ़ने का नाम है इसमें घटने जैसा कुछ भी नहीं।
जिससे प्रेम है वही दुनिया में सबसे सुंदर दिखता है।
कैसे पहचाने कि सच्चा प्रेम बंधन | Prem Bandhan है?
जिससे प्रेम हो उसमें ईश्वर की छवि दिखने लगे, श्रद्धा का भाव आने लगे समझ लो प्रेम सच्चा है।
उसके दूर रहने में भी विकलता न हो उसके पास होने का एहसास हो प्रेम सच्चा है।
जिस वस्तु को उसने स्पर्श किया उसे स्पर्श करते ही किसी अन्य दुनिया में खो जाना।
ईश्वर से उसके लिए दिव्य प्रार्थनाएँ करना सच्चा प्रेम बंधन | Prem Bandhan है।
किसी एक की परेशानी के वक्त दूसरे को भी पीड़ा होना सच्चा प्रेम है
प्रेम को परिभाषित नहीं किया जा सकता यह बहुत विस्तृत है।
मेरे लिए प्रेम ‘पवित्र प्रार्थना ‘का रूप रहा है ऐसे ही सबका अपना – अपना प्रेम है।
प्रेम के अस्तित्व के बिना संसार की कल्पना करना ही व्यर्थ है।
सोचो यदि प्रेम न होता तो जीवन कैसा होता?
सोच में पड़ गए न! गहराई में जाकर सोचो! जरा और गहराई से सोचो कि प्रेम के बिना दुनिया और लोग कैसे होते।
एक कहानी स्मरण आ गई –
एक गुरु के पास एक व्यक्ति दीक्षा लेने पहुँचा। और बोला- हे गुरुवर!
मै घर गृहस्थी से थक गया हूँ मुझे अब आप अपनी शरण में ले लो और मुझे दीक्षा दीजिये।
गुरु बोले – सो तो ठीक है मै यहाँ दीक्षा देने के लिए ही बैठा हूँ किंतु तुम उस योग्य तो बनो। तुम पहले यह बताओ कि क्या तुमने कभी किसी से प्रेम किया है?
इतना सुनकर वह व्यक्ति बोला- कि “प्रेम” ,,,प्रेम,,,मै नहीं करता किसी से भी नहीं।मैंने कभी नहीं किया।
गुरु बोले- तो तुमको दीक्षा कैसे दूँ बिना प्रेम जाने ईश्वर की भी भक्ति नहीं हो सकती ।
जाओ पहले प्रेम करके आओ।
तब दीक्षा दूँगा।
Prem Bandhan
इस कहानी का तात्पर्य सीधा सा है प्रेम के बिना ईश्वर की भी प्राप्ति नहीं होती।
प्रेम जब हो जायेगा तो छल दंभ ईर्ष्या सब दूर हो जायेगी।
भगवान कहते हैं ‘मोहि कपट छल छिद्र न भावा’
प्रेम बंधन | Prem Bandhan में मिलावट नहीं चलती, मिलावट वाला तो नकली प्रेम है जिसमें न कोई तप की ऊर्जा है न शक्ति और न दृष्टि।
इसलिए प्रेम बंधन | Prem Bandhan करने से पूर्व सच्चे प्रेम के स्वरूप को समझो।
यह ज्ञान उद्धव को गोपियों से मिला और उन्होंने ज्ञान से ज्यादा प्रेम बंधन | Prem Bandhan को ऊपर बताया।
प्रेम बंधन | Prem Bandhan एक एेसा विषय है जिसपर अनेक साहित्यकारों ने लिखा,,, साथ ही इस विषय को लेकर यौवनावस्था से वृद्धावस्था आने तक हर कोई खुद को लेखक मान कर अपनी प्रेम गाथा की चंद पंक्तियाँ तो लिखता ही है …
फिर उसे बार -बार पढ़ कर खुद ही समीक्षा करके खुद को श्रेष्ठ आँकता है और सोचता है कि उसने जो लिखा वह दुनियां के सबसे खूबसूरत चुनिन्दा शब्द हैं और इसी बीच चहलकदमी होती है एक मुस्कराहट की… जो आहिस्ता -आहिस्ता उसके साथ रहने लग जाती है …
नवयुवकों में जहाँ आजकल “लव सेक्स धोखा “प्रचलित है वहीं इस विषय पर मेरा पहला आर्टिकल “प्रेम पवित्र प्रार्थना “लोगों ने बहुत पसंद किया !
यह मेरे लिए बहुत सुखद है सच्चे प्रेम बंधन | Prem Bandhan की अनुभूति आखिर कौन नहीं करना चाहता !क्योंकि इसकी अनुभूति शारीरिक आकर्षण से कहीं ऊँची ,पवित्र निस्वार्थ होने से असीम सुख देने वाली होती है!
प्रेम बंधन | Prem Bandhan में विश्वास पवित्रता होना नितान्त ही आवश्यक है!
आज कितने ही ऐसे धनाड्य हैं जो सब कुछ पास होने के मद में सच्चे प्रेम को पा लेने की जिद रखते हैं किंतु वह इसमें असफल हो जाते हैं और सांसारिक कुचक्रों में फँसकर खुद को तबाह कर लेते हैं
रहीमदास जी ने दोहा छंद को माध्यम बनाकर साफ -साफ कहा है —
“रहिमन खोजे ईख में जहाँ रसनि की खानि!
जहाँ गांठ तँह रस नहीं यही प्रीति में हानि!!
मतलब साफ है.. गन्ने में बहुतायत रस होता है किंतु जहाँ पर गांठ होती है वहाँ रस नहीं होता!
यही बात प्रेम बंधन | Prem Bandhan पर लागू है प्रेम मीठा रसपूर्ण है किंतु प्रेम में छलावा रूपी गांठ रहने पर प्रेम नहीं रहता!
तमाम साहित्यकारों ने विभिन्न रस छंदों, गजलों में प्रेम के स्वरूप, प्रेम के अस्तित्व का वर्णन किया है… कहानी, उपन्यास महाकाव्य, नाटक यहाँ तक की यात्रा वृतांत तक में प्रेम विषय को बहुत खूबसूरती से पेश किया गया है प्रेम के बहुत से स्वरूप हैं रचनाकार लेखक गंभीर चिंतन वाले होते हैं तभी तो वह मौन तक को सुन लेते हैं प्रकृति से बात कर लेते हैं वह मानते हैं यहाँ भी प्रेम है तब ही वह भावों को शब्दों का आकार देने में सफल हुए हैं.. प्रकृति के सुकुमार कवि कहे जाने वाले सुमित्रानंदन पंत जी की रचनाएँ इस संबंध में बहुत सुंदर उदाहरण हैं…
प्रेम बंधन | Prem Bandhan श्रद्धा से उत्पन्न हो तो पवित्र समझना चाहिए वरना यह ‘आकर्षण’ से अधिक कुछ नहीं….
जब हम किसी व्यक्ति या वस्तु पर ‘श्रद्धा ‘टिका लेते हैं तो वह हमें अत्यधिक प्रिय हो जाती है फिर उसका तनिक भी अप्रिय सोचने भर से तन में सिहरन सी दौड़ जाती है और मन तब उसके लिए स्वतः ही ‘प्रार्थना’ कर उठता है !
प्रार्थना के भाव पवित्र होने के कारण बिना किसी विघ्न के ईश्वर तक पहुँचते हैं और इस तरह प्रिय का अहित होते -होते बच जाता है…
अक्सर सुना होगा आप जिसे चाहते हैं उसके बीमार होने पर उसके स्वास्थ्य के लिये प्रार्थना करते हैं चाहें डॉक्टरों ने हाथ क्यूँ न खड़े कर लिये हों आप प्रार्थना करते हैं तो वह आश्चर्यजनक तरीके से स्वस्थ होने लगता है!
प्रेम बंधन | Prem Bandhan में प्रार्थना की शक्ति सभी धर्मों ने मानी है हिन्दू ने प्रार्थना, मुस्लिम ने दुआ, ईसाई ने प्रेयर अलग -अलग नामों से….
किंतु बात एक ही है सच्चे पवित्र प्रेमपूर्ण तरीके से हदय से प्रार्थना करना जीवन में सुखद आश्चर्य भर देता है
“प्रेम बंधन | Prem Bandhan अंधा होता है “कितनी ही बार सुना होगा आपने! सत्य है इसकी जब अनुभूति होती है तो बस इसकी ओर ही ध्यान जाता है कोई भेद नहीं रह जाता न उम्र, न जाति, न ऊँच ,न नीच भाषा या अमीर -गरीब का कोई फर्क नहीं पड़ता ..किंतु तब जब यह सच्चा हो, वरना लोग तो सबकुछ पता लगाने के बाद ही इजहार करते हैं और इसी स्वार्थ के कारण उनके रिश्ते लम्बे नहीं चलते और एक दुखद अंत होता है!
अमुक व्यक्ति में जब वह समान या प्रिय गुण मिल जाता है जिसे हम हर कहीं खोज रहे होते हैं तो प्रेम बंधन | Prem Bandhan की स्वतःअनुभूति होने लगती है उसे कहाँ समय रहता कि वह पूंछ सके तुम अमीर हो, ऊँचे जाँति के हो,या इस भाषा को जानते हो, तुम्हारी उम्र क्या है? बहुत से प्रश्न.. जो स्वार्थी मनुष्य अपने साथ लेकर घूमते हैं किंतु सच्चा प्रेमी तो प्रथम मुलाकात में कुछ कह ही नहीं पाता…
कुछ तो आजीवन अपने प्रेमी -प्रेमिका को बता ही नहीं पाते कि मुझे उनसे प्रेम है किंतु उसके किसी समस्या से ग्रस्त होने पर मालुम चलते ही निराकरण करने की सोचते हैं ताकि वह सदैव खुश रहे और उसे खुश देखकर खुद को शांति मिले…
राधा कृष्ण की अनेक कथाओं के अंश इसका सर्वश्रेष्ठ उदाहरण हैं
प्रेम में शक्ति हो तो वह मनुष्य या जीव अपने प्रिय को अकाल मृत्यु तक से बचा सकता है कलियुग में ही सावित्री का यमराज से पति को बचा लाना ही एकमात्र उदाहरण नहीं है बल्कि भारत में तमाम ऐसी आश्चर्यजनक सच्ची घटनाएँ पढ़ने को मिल जायेंगी जहाँ माना गया है कि प्रेम प्रार्थना में अद्भुत शक्ति है और यह गंभीर रोगों तक से मुक्ति दिला सकती है..
प्रेम बंधन | Prem Bandhan ही वह दवा है जिसे पिलाकर बड़े -बड़े अहंकारियों के अंहकार का नाश हो गया,, पैशाचिक प्रवृत्ति वाले मनुष्यों के हदय सरलता से भर गये… इसका एक मूल्यवान उदाहरण महात्मा बुद्ध और अंगुलिमाल हैं भगवान बुद्ध ने बड़े प्रेमपूर्वक तरीके से अंगुलिमाल से कहा –तुम कहते हो ठहर जाओ, ठहर जाओ मै तो कब का ठहरा हूँ.. “तुम कब ठहरोगे “
अगर यही बात क्रोध से कही जाती तो क्या अंगुलिमाल डाकू जो पल भर में किसी मनुष्य की जान ले लेता था क्या सुधर सकता था! किंतु प्रेम का मिश्रण होने से यह बात प्रभावी हुई….
प्रेम निवेदन हो या प्रार्थना हर रूप में प्रेम ईश्वर का अंश है एक एेसा गुण है जिसके आने पर यकायक बुराईयाँ साथ छोड़ने लग जाती हैं व्यक्ति में देवत्व के गुण आने लगते हैं व्यक्ति निस्वार्थी हो जाता है पवित्र विचारों के प्रवाह से मन आध्यात्मिक होने लगता है…
किंतु प्रेम बंधन | Prem Bandhan तब जब यह सच्चा हो! अन्यथा यह क्लेश देने वाला होता है!
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