हैजा के लक्षण और उपचार: हैजा को हिंदी में विषूचिका भी कहते है, हैजा एक जीवाणु रोग है जो आमतौर पर दूषित (ख़राब) पानी से फैलता है।
हैजा के लक्षण और उपचार
हैजा बहुत गंभीर खतरनाक दस्त और दुर्बलता का कारण बनता है। हैजा कुछ ही घंटों में घातक हो सकता है, यहां तक कि पहले से स्वस्थ लोगों में भी हैजा हो सकता है।
आधुनिक जल उपचार ने औद्योगिक देशों में हैजा को लगभग समाप्त कर दिया है। और हौजा पर सफलता हासिल कर ली है
हैजा के कारण
इस रोग में रोगी को लगातार दस्त एवं उलटी होते रहते हैं एवं अस्पताल में भर्ती किए बिना रोगी की चिकित्सा कठिन होती है। क्योंकि सरीर में जल, लवण और कैल्शियम की कमी हो जाती है।
यह रोग विब्रियो कोलैरी नामक जीवाणु से फैलता है। अगर रोगी के मल में ये जीवाणु न मिले, तो इन लक्षणों वाले रोग को आन्त्रशोथ समझना चाहिए।
तीर्थ, शिविर, मेले इत्यादि में कोई इंसान के मल से निकले जीवाणुओं से जल के दूषित होने पर ये रोग महामारी के रूप में फैलता है। उचित सफाई न करने पर ऐसे व्यक्तियों के हाथों में ये जीवाणु चिपका रह जाता है एवं खाना और कच्ची सब्जियों, सड़े-गले, कटे फलों को दूषित कर रोग को फैलाता है।
हैजा के लक्षण
रोगी को लगातार उलटी एवं दस्त आते हैं, जिनके बीच की अवधि बहुत ज्यादा तेजी से कम होती जाती है।
मल में आंत की श्लेष्म कला की झड़ी हुई झिल्ली भी निकलती रहती है, जिससे आंत की रक्त वाहिनियों की पारगम्यता बढ़ जाती है।
एवं सरीर का अधिकांश द्रव आंत में आने लगता है, जो अंतत: मल के साथ गुजर जाता है एवं सरीर में जल और लवण इत्यादि की कमी का कारण बनता है।
इसके अतिरिक्त प्यास, जलन, पेट दर्द, जम्हाई आना, चक्कर आना, सरीर में झटके आना, त्वचा में पीलापन और सारे सरीर का कांपना यह लक्षण रोग बढ़ने के साथ-साथ सरीर में प्रकट होते जाते हैं।
हैजा के उपचार
- रोगी को नारियल का जल पिलाएं।
- नीबू का रस जल में मिलाकर दें।
- बताशे में अमृतधारा डालकर रोगी को दें।
- सौंफ, प्याज एवं पुदीने का अर्क थोड़ी-थोड़ी देर में रोगी को 2-2 घूंट पिलाते रहें।
- लौंग का काढ़ा बनाकर थोड़ी-थोड़ी देर बाद देते रहें।
- इलायची एवं लौंगे 4-4 ग्राम, जायफल 10 ग्राम और अफीम 1 ग्राम मिलाकर पी लें एवं दो घूंट जल के साथ देने से तत्काल लाभ होता है।
- अफीम, कपूर, जायफल, लौंग एवं केसर। हर एक को 5-5 ग्राम लेकर बारीक पीसकर मिला लें। इस चूर्ण को 200 मिली ग्राम की मात्रा में रोगी को एक-एक घंटे के अंतर से देते रहें।
- आक की जड़ को समान भाग अदरक के रस में डालकर घोटें। अच्छी तरह घुट जाने पर काली मिर्च के बराबर की गोलियां बना लें। हर तीसरे घंटे रोगी को एक-एक गोली खिलाते रहें।
- तुलसी के पत्ते, आक की जड़ एवं काली मिर्च, तीनों को समान मात्रा में लेकर कूटें एवं मटर के दाने के बराबर गोलियां बनाएं। हर आधे घंटे बाद दो-दो गोली उबाल कर ठंडा किए हुए जल के साथ दें।
- सेंधानमक, हींग एवं भुना हुआ जीरा बराबर की मात्रा में मिलाकर, पीसकर आधा चम्मच की मात्रा में दो गुने प्याज के रस के साथ दें।
- सोंठ, सफेद जीरा, काला जीरा, लाल मिर्च सब ही 2-2 भाग, भुनी हुई हींग 3 भाग और अफीम 1 भाग लेकर सबको पीसकर जल में घोंटें और काली मिर्च के बराबर की गोलियां बना लें। उबाल कर ठंडा किए हुए जल के साथ हर आधे घंटे बाद एक-एक गोली देते रहें।
- सूखे नारियल की जटा जलाकर राख कर लें एवं बारीक पीस कर 1 ग्राम की मात्रा में उबाल कर ठंडा किए हुए जल के साथ हर दो और तीन घंटे बाद दें।
आयुर्वेदिक दवाईंया
रामबाण रस, शंखवटी, अग्निकुमार रस, चित्रकादि वटी।
पेटेंट दवाईंया
अर्क वटी (बैद्यनाथ),विशूचिका वटी (गुरुकुल कांगड़ी), सूचिका भरण रस (डाबर)।
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